अब तो बचपन बच्चो में भी कहीं नहीं
बड़ो सी सोच ,बड़ो सी बात कही ,
ना मासूमियत और ना भोलापन
ना शरारत भरा बडबोलापन ,
झगडे में अब हास्य का भाव नहीं
ता -उम्र अब जाता खिंचाव नहीं ,
बड़ों की रंजिशे अब ढोते बच्चें
कीमती बचपन को खोते बच्चें
सोच ही जब यूँ मैली हो रही है
कल्पना कितनी विषेली हो रही है
वैशाली भरद्वाज (pichu sharma)
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