Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हीरा

 

वह एक गाँव की लड़की थी ,कच्चे रास्तों पर बड़ी मजबूती से कदम रखती हुए ,बड़े विश्वास के साथ चलती जाती थी | मेरी छोटी सी दुकान जो कि उसके स्कूल के एकदम पास में पड़ती थी और जिसमे वह विज्ञान की अध्यापिका थी |सुना था कि वह छोटे –छोटे बच्चों को ही पढ़ाया करती थी | मेरी भी उससे बात करने की बड़ी इच्छा होती थी लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ही उससे बात करने में बड़ी झिझक होती थी | असल में मैं पढाई में बहुत कमजोर सा विद्यार्थी था और विज्ञान विषय से तो मेरा सांप नेवले वाला बैर था| मुझे लगता था मानो वह मुझसे विज्ञान का कोई प्रश्न ही पूछ लेगी |

 

एक दिन जब वह मेरी कपड़े की दुकान पर अपने लिए दुपट्टा लेने आई तो मैंने हिम्मत करके उसका नाम पूछ ही लिया और वह भी जैसे बात को आगे बढ़ाने की इच्छुक थी ,उसने मेरा थोडा सा परिचय प्राप्त करना चाहा |

 

‘जी मेरा नाम दीपिका है और मैं यही पास में अलंकरण हाई स्कूल में पढ़ाती हूँ ‘’|

 

‘अरे, मेरा भांजा लोचन भी उसी स्कूल में चौथी कक्षा में पढता है, मैंने अन्जान बनने का नाटक किया |

 

अच्छा! लोचन आपका भांजा है ,मैं उसे भी पढ़ाती हूँ |

 

‘जी मैडम ,लोचन पढ़ने में कैसा है ‘’?

 

‘’देखिये उसके भले के लिए मुझे सच तो कहना ही होगा ,वह पढ़ने में कम ही ध्यान लगाता है ...... आपको थोड़ा सा उसकी पढ़ाई के बारे में सतर्क रहना चाहिए ,मेरा विषय विज्ञान तो उसे ज़रा भी पसंद नहीं है |’’

 

‘’ मैं अपने भांजे की शिकायत सुनकर जितना सकपका गया ,उतना ही मैडम की सीधी सच बात सुनकर खुश भी हुआ ‘’|

‘जी मैडम ,दरअसल बात ये है कि वह पढ़ाई के मामले में अपने मामा पर गया है |’

 

दीपिका जी इस बात पर हँस पड़ी और वहाँ पड़े दुपट्टों में से अपने लिए पीले रंग के दुपट्टे का चुनाव करने लगी |

“जी मैडम ,आप ये कढ़ाई वाले दुपट्टे देखिये ,ये नया माल कल ही मैं शहर से लाया हूँ ‘’|

 

‘’ जी नहीं भा......

रतन नाम है जी मेरा .....आप कृपया रतन ही कहिये | इससे पहले वह मुझे भाई कह डालती ,मुझे उसकी बात काटनी पड़ी | मेरे हाव- भाव देखकर उसके चेहरे पर मंद सी मुस्कान बिखर गयी |

 

अब तो मानो उसने अपने कपड़े खरीदने के लिए मेरी दुकान ही पक्की कर ली | मैं भी उसके इन्तजार में रहने लगा जबकि उसकी तरफ से ऐसी कोई भी बात नहीं आई थी जिसे मैं प्यार मोहब्बत का नाम दे सकता लेकिन उसके आने से ही मुझे खुशी मिलती थी | एक बार उसने अपना कुछ जरूरी सामान मुझसे शहर से मंगवाया तो मुझे लगा कि हमारे बीच विश्वास की एक पतली सी डोर भी बंध गयी लगती थी |

 

रविवार को जब स्कूल बंद होता तो मेरा मन भी दुकान पर नहीं लगता था लेकिन मैं उसके सामने अपने आपको आलसी भी तो नहीं दिखा सकता था |

 

फिर एक दिन लोचन ने घर आकर बताया कि उसकी मैडम दीपिका की सगाई ,शहर के किसी अध्यापक से हो गयी है और मैडम ने जल्दी ही स्कूल छोड़ने का निर्णय कर लिया है | लोचन की यह बात सुनते ही मेरे पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी क्योंकि मैं तो अपने गृहस्थ जीवन का सपना उसी के साथ बसाने की सोच रहा था और जल्द ही माँ से उस लड़की के बारे में बात भी करने वाला था लेकिन अब अपने ही बुने हुए सपने को उधड़ते देख मैं चुपचाप वहाँ से अपनी दुकान पर चला गया |मेरी काम करने की शक्ति ही खत्म हो गयी थी लेकिन ये तकलीफ मुझे अपने आप सहनी थी और मैं सह भी रहा था |

 

फिर एक दिन दीपिका जी अपनी माँ के साथ दुकान पर आई |

उन्हें अपने ससुराल वालो को उपहार में देने के लिए कुछ महंगे कपडे खरीदने थे |

मैं पढाई में भले ही कमजोर था लेकिन व्यापार ने मुझे लोगो के चेहरे पढ़ना बहुत अच्छी तरह सिखा दिया था | दीपिका जी की माँ तो बहुत खुश नज़र आ रही थी लेकिन दीपिका जी के चेहरे पर रिश्ता जुड़ने की कोई खास खुशी नज़र नहीं आ रही थी जो कि मेरे लिए हैरानी का विषय था और दूसरे ही पल संतोष का भी |

 

दीपिका जी ने कोई खास बात नहीं की और न ही मेरी ओर से बधाई स्वीकार की | ये बात मुझे बैचैन तो कर गयी लेकिन उस वक्त मैं एक दुकानदार भी था,सो मेरा ध्यान दूसरे ग्राहकों की ओर चला गया | उस दिन सारी रात मैं अंदाज़ा लगाता रहा कि आखिर दीपिका जी की उदासी का क्या कारण हो सकता है ?

 

अगले दिन सुबह मैं शहर में नया माल लाने के लिए जाना चाहता था ,पर इससे पहले मैं दुकान खोल कर कुछ नकद पैसे लेने चला गया,तभी मैंने देखा , दीपिका जी ख़रीदे हुए कपड़ों का थैला लेकर दुकान की तरफ आ रही हैं |

रतन जी ,नमस्कार |

नमस्ते ,दीपिका जी |

‘’ जी दरअसल ,मुझे आपकी दुकान से कल खरीदे हुए कुछ कपड़े वापिस करने थे |’’

‘’ जी,बिलकुल मैडम ,आपकी अपनी दुकान है ,क्या कुछ खराबी है कपडे में ?’’

‘’ अरे नहीं नहीं , बस मुझे कपड़े का रंग बदलवाना था ‘’| कहते ही वह चुप हो गयी और आँखें झुका ली |

दीपिका जी जरूर कोई बात करने आई थी ,बस संकोच कर रही थी | मैंने इस बात का अंदाज़ा लगा लिया था |

मैंने कपड़ों की पैकिंग खोलनी शुरू की और उन्हें नया माल दिखाना शुरू कर दिया | ‘’ दीपिका जी ,आप थोड़ी चाय लेंगी ? वो जी आज मैं बिना चाय पिए ही घर से निकला था | प्लीज़ !मना मत कीजिये |

 

वह कुछ नहीं बोली ,इसका अर्थ मौन सहमति था | मैंने साथ वाले चाय के खोखे से दो चाय मंगवा ली | वह चुपचाप नए माल में से कपड़ों के रंग पसंद करने लगी |

 

‘’दीपिका जी ,कौन से शहर जाएँगी आप शादी के बाद ? ‘’, मैंने एक सीधा सा प्रश्न किया |

‘’ जी , दिल्ली के पास एक गाँव है धनपुर |’’

‘’सुना है ,सर भी अध्यापक है ,वे क्या पढाते है ?’’

‘’संस्कृत ‘’

‘’क्या नाम है उनका ?’’ इस बीच चाय वाला आ गया और मैंने उससे चाय लेकर दीपिका जी को पकड़ाई |

‘’ रमेश ‘’ वह चाय पकड़ते हुए धीरे से बोली |

‘’आप पहले चाय पी लीजिए ,ये मैं आपको बाद में दिखा दूंगा |’’ हालांकि वह दुखी थी लेकिन उनके साथ चाय पीने की खुशी मेरे चेहरे पर साफ़ झलक रही थी | मैं चाहता था कि वह मेरे साथ खुलकर अपनी समस्या बांटे ताकि मैं उनकी तकलीफ जान सकूं | मैंने बेशक अपने प्यार का इज़हार नहीं किया था लेकिन मैं चाहता था कि वो अपने जीवन में खुश रहे | एक अच्छे जीवनसाथी को प्राप्त करे क्योंकि मेरी बात अभी एकतरफा ही थी और मैं इसका कोई भी संकेत देकर उन्हें नई परेशानी में नहीं डालना चाहता था |

 

‘’ रतन जी ,चाय बहुत स्वाद है’’ ,वो थोडा सा मुस्करा कर बोली |

‘’जी धन्यवाद ,ये हमारा लड़का चाय खास बनाता है |’’

‘’दीपिका जी ,अगर आप बुरा न माने तो एक निजी प्रश्न पूछ सकता हूँ आपसे|’’

‘’ जी पूछिए | ‘’ वह हैरान नज़रों से देखते हुए बोली |

 


‘’ कल जब मैंने आपको देखा तो मुझे आपके चेहरे पर नए रिश्ते की कोई खुशी

नज़र नहीं आई | क्या आप इस रिश्ते से संतुष्ट नहीं है ?’’ मैंने थोडा नरमदिली से पूछा |

 

उनकी आँखों के भीगे हुए कोने साफ़ दिख रहे थे | वह थोड़ी देर चुप बैठी रही और नए कपड़े को उलटती पलटती रही | मानो वह दुविधा में थी कि एक अजनबी से अपनी बात कैसे कहे | लेकिन फिर उसे लगा कि वह रतन से अपनी बात कह सकती है | उसने रतन को अपनी बात कहनी शुरू की |

 

जी ,वो रमेश जी ,दिल्ली से है और एक अच्छे खानदान से है |वे संस्कृत पढाते हैं बल्कि एक बड़े कॉलेज में प्राध्यापक हैं |’’| दीपिका जी धीरे से अपनी बात कह रही थी |

 

‘’ये तो बहुत अच्छी बात है ,लेकिन फिर समस्या कहाँ पर है दीपिका जी’’| मैं हैरानी से बोला क्योंकि सुनने में रिश्ता उनके योग्य लग रहा था |

 

मेरा सवाल सुनते ही वो रोने लगी | उनके रोने की वजह जानना मेरे लिए बहुत जरूरी था सो मैंने उन्हें थोडा सयंत भाव से काम लेने के लिए कहा | फिर उन्होंने धैर्य से अपनी बात बतानी शुरू की |

 

‘’रतन जी ,वो जब रिश्ते की बात लेकर घर आये थे तो बड़े ही संभ्रांत और सभ्य लग रहे थे | यहाँ तक कि उन्होंने दहेज की भी मांग नहीं की और शादी के बाद मेरी नौकरी पर भी कोई ऐतराज़ नहीं किया |’’

 

ये सुनकर अब तो मेरा आश्चर्य और भी बढता जा रहा था कि इतने अच्छे रिश्ते की बात से आखिर दीपिका जी को क्या दिक्कत हुई होगी लेकिन मैंने उन्हें बीच में टोकना उचित नहीं समझा | और उनकी बात सुनने लगा |

वो रुंधे हुए गले से ,नज़रे झुका कर बोली,” रतन जी ,मैंने आज तक आपसे एक निजी बात छुपाई है |”

‘’ वो क्या है दीपिका जी ‘’?

‘’दरअसल ,मेरी एक छोटी बहन है जो बचपन से ही मानसिक रूप से परेशान है ‘’|

 

‘’ क्या कह रही है आप ?’’ मुझे जानकर बड़ा धक्का लगा |

जी हां ,लेकिन वो हम सबको बहुत ज्यादा प्यारी है और हम उसे किसी भी तकलीफ में नहीं देख सकते | मेरे बड़े भाई ने उसके इलाज़ की बात शहर के बड़े डॉक्टर से चला रखी है और हमें उम्मीद है कि वो जल्द ही ठीक भी हो जायेगी ‘’|

‘’ये तो बड़ी अच्छी बात है | ‘’मैं खुशी से बोला |

 

‘’लेकिन जब मैंने रमेश जी को अपनी छोटी बहन से मिलवाया तो जानते है आप उन्होंने क्या कहा ?’’ क्या ? मैंने उनसे पूछा |

‘’साली साहिबा को तो हिंदी समझ नहीं आती तो संस्कृत कैसे समझ आएगी |

और अकेले में उन्होंने कहा कि हमारी बेटी ऐसी नहीं होनी चाहिए ‘’|

फिर वह थोडा रुक कर बोली ,’’रतन जी ,जिस आदमी को एक बीमार लड़की की

भावनाएँ समझ नहीं आती ,उसे एक स्वस्थ लड़की की भावनाएँ कैसे समझ आएँगी ?’’

दीपिका जी की बात में वाकई ठेस थी |

 

“रतन जी ,मैं ये सगाई तोड़ तो दूं लेकिन घर की माली हालत के चलते मेरी शादी होनी जरूरी है |अब आप ही बताए कि मैं क्या करूं|” और वह ये सब कहकर फिर से रोने लगी |

मुझे लगा कि अब मुझे अपने दिल की बात कहने की हिम्मत दिखानी चाहिए |


लेकिन अचानक प्रेम भरे शब्द ,उन्हें दया का रूप लग सकते थे | मैंने लाल दुपट्टों में से एक दुपट्टा उठाकर दीपिका जी को ओढा दिया | दीपिका जी ने भी मेरी बात का अर्थ समझ कर ,शादी के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया | शायद उनके जीवन की अंगूठी को उसका हीरा मिल गया था |

 

 

वैशाली भरद्वाज (pichu sharma)

 

 

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