जब बुत टूटा तो हुई हरारत ,बन्दा टूटे तो टूटे
भैंस की सीरत में सरकारें ,उफ़ ये सत्ता के खूंटे|
प्रजातंत्र को कैसे पाया ,भूल चुके है नेता
जनता चली है बिकने ,ये बन बैठे हैं विक्रेता
हमने हद कर दी सहने की ,सरकार ने अपनी जिद की
पटरी से उतरी सारी व्यवस्था ,जैसे हो घोड़ी बिदकी|
बिजली नहीं ,नहीं है पानी ,ये सरकारी उपहार
मिलेंगे तब तक ,जब तक जनता लेने को तैयार|
आँख दिखाओ ,कानून टूटे और पड़ सकती है लाठी
आखिर कौन चढा पायेगा ,इस घोड़े की काठी |
वैशाली भरद्वाज (pichu sharma)
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