कोई शोर से है व्यथित
कोई मौन में ही है स्थित
कोई पीड़ा से है सीखता
कोई प्रेम पर भी झीखता
कोई मोल पे भी बिक पाए न
कोई बिक के भी मोल पाए न
कोई जीवन पे प्रयोग करे
कोई जीवन का भोग करे
कोई बन गया अपराधी है
कोई पुण्य की समाधि है
कोई सोए हुए भी जागता
कोई नींद में भी भागता
कोई करता है आलोचना
कोई चाहे ही न सोचना
कोई जमीन में है गडा हुआ
कोई गगन से भी बड़ा हुआ
कोई भीड़ से है झांकता
कोई भीड़ को है ताकता
कोई बहुत ही कर्मशील है
कोई आलस्य की ढील है
कोई सच की है तलाश में
कोई झूठ के है पाश में
कोई बेचता है सांस भी
कोई नोचता है मांस भी
वैशाली भरद्वाज
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