Vaishali Bhardwaj
रोज एक शौक खत्म होता है ,रोज एक सपना लेता हूँ
रोज एक खुशी गवां कर मैं कोई दर्द ही अपना लेता हूँ |
दस्तूरे दुनिया है धोखे पे धोखा देना
शायद नहीं जानती ये मौका देना
धोखा खाता हूँ मैं भी और फिर भी भुला देता हूँ |
हर बदी छुप के बैठी है इस एक बहाने में
बुरा मैं नहीं क्योंकि बुराई तो है जमाने है
इसलिए खुद की बेहयाई को छिपा लेता हूँ |
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