Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रोज एक शौक खत्म होता है ,रोज एक सपना लेता हूँ

 

Vaishali Bhardwaj

 


रोज एक शौक खत्म होता है ,रोज एक सपना लेता हूँ
रोज एक खुशी गवां कर मैं कोई दर्द ही अपना लेता हूँ |


दस्तूरे दुनिया है धोखे पे धोखा देना
शायद नहीं जानती ये मौका देना


धोखा खाता हूँ मैं भी और फिर भी भुला देता हूँ |
हर बदी छुप के बैठी है इस एक बहाने में


बुरा मैं नहीं क्योंकि बुराई तो है जमाने है
इसलिए खुद की बेहयाई को छिपा लेता हूँ |

 

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