Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रोना इक रवायत ,हँसना मजाक हो गया है

 

 

 

ego

 

रोना इक रवायत ,हँसना मजाक हो गया है
जीना इस कदर आजकल बेबाक हो गया है |


आदत सी हो गयी है ज्यादती आजकल
आदमियत का रुतबा यूँ ख़ाक हो गया है |


जीने का जरिया कभी होती थी दौलत
खुद आदमी ही इसकी अब खुराक हो गया है |


चाहे उलझ ही जाएँ दुनिया की और बातें
सबसे बड़ा सवाल बस अब नाक हो गया है |

 

 

वैशाली भरद्वाज

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