आज सुबह से घर में चहल पहल का माहौल था | आज गुरूजी आने वाले थे और सब उनके स्वागत की तयारियों में जुटे थे |नौकर तो जैसे एक टांग पर खड़े थे |बच्चों को स्कूल से छुट्टी मिल गयी थी ताकि उन्हें गुरु जी का आशीर्वाद दिलवाया जा सके लेकिन बच्चों की नजर गुरु जी के आशीर्वाद से ज्यादा उनके लिए बन रहे भोग मिष्टान्न पर थी | सुबह से बस उन्हें एक गिलास दूध ही जो मिला था पीने को क्यूंकि घर में नियम था की गुरु जी को भोग लगाये बिना कोई कुछ नही खा सकता | ऐसे में दादा दादी जो सांस की बीमारी से जूझ रहे थे और दवाई लेना उनके लिए बेहद अनिवार्य भी थे लेकिन उन्हे भी घर की बहु ने खाना खाने की स्वीकृति नही दी | गुरु जी घर के बहू बेटों के लिए भगवान् तुल्य थे और उनके आशीर्वाद की गूँज ने माता पिता की खड़ खड़ करती खांसी को उनके ही घर के किसी कोने में दबा दिया था |उनकी नजर में पहले ही धन दौलत और महिमामंडन से लदे गुरु जी के लिया स्वीकृति थी लेकिन अपने बूढ़े माँ बाप की कोई स्वीकृति नहीं थी जिन्होंने उन्हें इस लायक बनाया की वे समाज के सामने नजर उठा कर बात कर सके| वे अपने दर्प में भूल चुके थे की अगर माँ बाप की स्वीकृति ही न होती तो क्या उनका इस धरती पर कोई वजूद भी होता और माँ बाप अपमान के बाद की गयी किसी भी पूजा को क्या खुद ईश्वर कोई स्वीकृति दे पाएंगें ?
वैशाली भरद्वाज
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