Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अपवाद गुरूत्वाकर्षण नियम का

 

बात उन दिनो से षुरू होती है जब हम स्कूली छात्र हुआ करते थे और हमारे सहपाठी विज्ञान के कालखंड में रात की आधी अधूरी नींद पूरी कर रेखा श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित के ख्वाब देखा करते थे। आज भी कुछ नही बदला है आज हम छात्रों को विज्ञान पढा रहे होते हैं तो छात्र फेसबुक और व्हाट एप्प की चर्चाओं में मशगूल दिखते है। वेचारे विद्यार्थी भी क्या करें कोर्स में उल जलूल चीजें जो भरी है। आज का पाठयक्रम क्लोरोफार्म का काम करता है जिसे पढ़ते ही वेहोशी से नींद आने लगती हे।
एक दिन स्कूल में विज्ञान के मास्साब ने गुरूत्वाकर्षण नियम की व्याख्या सत्यनारायण की कथा के रूप में की । मास्साब ने बताया कि एक दिन न्यूटन सैर सपाटे के लिये बगीचे में गये थे कि अचानक सेव के वृक्ष से फल को उपर से नीचे की ओर गिरते देखा । यही से उनका वैज्ञानिक मन जाग उठा वे सोचने लगे कि यह सेवफल नीचे की ओर गिरने की वजाय उपर की ओर क्यों नही गया?लगता है िक इस घटना का जिक्र न्यूटन ने किसी से नही किया होगा वरना लोग नेक सलाह दे देते कि भैया क्यों सेवफल के पीछे पड़े हो यदि वह नीचे की ओर गिरता है तो इसमें आपका क्या विगड़ता है ?अच्छा है कि नीचे जमीन की ओर गिरता है तो हमारे खाने के काम आता है।यदि आसमान की पलायन कर जाता तो हमें तो सेव का स्वाद ही नही मिलता। पर न्यूटन भला किसी की कहाॅ मानने बाले थे सो खोज करके ही माने कि सेवफल पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के कारण जमीन की ओर आता । उनका यह गुरूत्वाकर्षण नियम आज भी विज्ञान के छात्रों को परेषान कर रहा है। आसमान में गति कर रहे दो पिण्डों के बीच लगने बाले गुरूत्वाकर्षण बल का मान निकालने में छात्रों को आज भी परीक्षा में पसीना पसीना होते देखा जा सकता है। ये अलग बात है कि हिन्दी के प्रसिद्ध हास्य कवि सांड नरसिंहपुरी ने तो बकायदा न्यूटन के नियमों को हास्य रस में ढालकर विज्ञान की षिक्षकों को उनकी औकात दिखा दी है।
हिन्दी में एक कहावत प्रचलित है कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी जो इसी कहावत को जिंदा रखने के लिये बांस और बांसुरी का होना नितांत आवष्यक हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर न्यूटन कई दिनों तक अपने प्रयोगों में हलाकान रहे और एक दिन उन्होने बताया कि सेव का यह फल पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के कारण उपर न जाकर नीचे की ओर गिरता हैं।
स्कूली जीवन में पढा गुरूत्वाकर्षण का नियम मेरी समझ में अब आया है । और मेरा मन भी इन दिनों इस नियम का अपवाद खोजने में भटक गया हैं। सोचता हूॅ कि यदि मुझे इस नियम का अपवाद मिल गया तो नोबल प्राइज पक्का है। हो सकता है कि र्कोइ यूनिवर्सिटी मुण्े डाक्टेट की उपाधि दे डाले अपन भी फोकट में नाम के आगे डाक्टर लिखने लगगेंगे। वैंसे भी इलाज करने बाले डाक्अर का सपना विद्यार्थी जीवन में अधूरा रह गया था वह पूरा हो जाये। किराये के मकान में एक अच्छी सी नेम प्लेट लगवा लेंगे । तब फिर कभी भी पोस्टमेन मुझसे ही मेरे से घर का पता नही पूछेगा। नाम को फलेष करने की लालसा में मैंने न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण नियम पर पीएचडी करने का निष्चय किया और एक दिन कालेज की सारी उिग्रियों को थैले में भरकर विशविद्यालयपहुंचा। विभागाध्यक्ष से मिलने के बाद जब रजिस्टेषन के लिये बाबू के पास पहुंचा तो उसने विना लाग लपेट के मुझे पीएचडी का रेट बता दिया।उसने प्रोफेसरी शैली में समझाते हुये बताया कि आपको कोई ष्षोध वोध नही करना आप तो नोट दो हम स ब कुछ करवा देंगे। पिछले बीस सालों में सैकडत्रों को करवा चुके हें। क्या करें पीएचडी का पैसा नीचे से उपर की ओर जाता है। सब मिल वांटकर खाते हैं तब जाकर कही पीएचडी अर्वाउहो पाती है।
बाबू साहब के बचनामृत सुनने के बाद पीएचडी करने का ख्याल नौ दोग्यारह हो चुका था ।नोबल पुरूष्कार मिलने का सपना टूट चुका था। हा लेकिन न्यूटन के नियम का अपवाद मुझे इसी विष्वविद्यालय के दफतर में मिल चुका था जहा पर पीएचडी के लिये ली जाने बाली रिष्वत की राषि नीचे से उपर की ओर जाती है। अंत में हम इस निष्कर्श पर पहुंच चुके थे हमारे देष के सरकारी दफतर ही न्यूटन के नियम के अपवाद हे।

 

 

• वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’

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