Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कण कण में वसा है शिष्टाचार

 

शिष्टाचारर हमारी संस्कृति का आवष्यक एवं अनिवार्य अंग है। रोजमर्रा की जिंदगी में शिष्टाचार का स्थान ठीक वैंसा ही हैें जैंसा कि राजनीति में धर्म का। शिष्टाचार के विना राजनीति लंगड़ी लूली है और धर्म अंधा है। अब व्हाट एप्पस का शिष्टाचार ही देखिये लोग दूसरों के मैसेज लोग अपने नाम से न जाने कितनों गु्रपों में षेयर कर देते है। कई वार तो होता सुबह मेरा बनाया मैसेज कई गु्रपों की परिक्रमा कर शाम तक संपादित होकर मेरे ही नंबर पर आ जाता है। एडमिन भी कमाल का षिष्टाचार निभाते हैं उन्ही सदस्यों के कई कई समूह बनाकर एक मैसेज को सभी समहों में भेजकर घुट्टी की तरह पिलाते है।
स्कूलों में मास्साब शिष्टाचार पर लेक्चर देते देते और विद्यार्थी सुनते सुनते शिष्टाचार के इतने आदी हो जाते है कि विद्यार्थी जब शिष्टाचार वष क्लास रूम में सो जाता है तो मास्साब भी शिष्टाचार के नाते दो चार हाथ जमाने में पीछे नही रहते। राजनीति में शिष्टाचार का प्रयोग एक दूसरे पर सफलतापूर्वक किया जाता है। सरकार जब बजट पेष करती है तो सत्ता पक्ष का प्रवक्ता बजट को जनकल्याणकारी बताता हैतो विपक्ष दल के नेता षिष्टाचार वष कहते हैं कि सरकार के बजट ने जनता के मुह पर तमाचा मारा है।राजनीति में षिष्टाचार का यही तरीका लाभप्रद है। ये बात और है कि सरकारी बजट चड!डी पहन के आता है और हमारा दूरदर्षन बचचों की तरह हमें बहलाता है कि चड्डी पहन के फूल खिला है।कहा जाजा है कि आवष्यकता ही अविष्कार की अम्मा है । आवष्यकताओं ने ही इस तरह के शिष्टाचार को जन्म दिया है।
एक बार एक चुनावी आमसभा में एक राजनैतिक प्रत्याषी अपने प्रतिद्वंदी के इतिहास के बारे में खुलासा कर रहा था कि प्रतिद्वंदी के चमचे भी शिष्टाचार वष मंच पर आकर गाली गलौच करने लगे। पहले वे एक दूसरे के वाप बने फिर साले और धीरे धीरे कई और रिष्ते भी कायम होते गये। बात जब आगे बढ तो घटना के बाद पहुंचने बाली पुलिस ने भी शिष्टाचार के नाते अपने डंडों से देष भक्ति जनसेवा का पाठ पढाया । बाद में दोनों पक्षों ने एक दूसरे के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई ,पुलिस ने दोनों पक्षों पर विना पक्षपात के धारायें लगाई और उन्हे हटाने के एवज में दोनों पक्षों से फीस भी बसूली तब जाकर मामला रफा दफा हुआ।
शिष्टाचार परमेष्वर की तरह कण कण में व्याप्त है। शिष्टाचार के हजारों मंुह और करोड़ो हाथ है। दफतर से लेकर मंत्रालय तक कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक शिष्टाचार के दर्षन सुलभ है। लोग षिष्टाचार वष दाना पानी बाबू को देते हैं बाबू पानी अपने पास रखकर दाना बडे साहब के पास फाइल में रखकर भेज देता हैं । बड़े साहब शिष्टाचार वष दाना अपने पास रखकर फाइल पर हस्ताक्षर कर देते हैं।बडे साहब भी क्या करें उन्हे भी लड़कियां ब्याहनी हैं और घोड़ा घास से दोस्ती नही करेगा तो खायेगा क्या?जुआ सट्टा खिलाने बाले शिष्टाचारवष पुलिस थाने आकर चाय नास्ते के साथ दरोगाजी को हफता दे जाते हैं । इसका फायदा ये होता है कि आप कही भी आम रास्ते ,खेत ,खलिहान में जुआ सट्टा खिला सकते हो । इसी शिष्टाचार के कारण पुलिस उन्ही दुकानों पर चाय पान करने जाती है जहाॅ सट्टे की पर्चाी लिखी जाती है। कभी पुलिस का भी मन करता है तो दो चार अंको पर वो भी सट्टे का दांव लगाकर अपना षौक पूरा कर लेते है।
कतिपय विध्न संतोषी येंसे भी है जो शिष्टाचार को भुलाने पर उतारू हैं। एक श्रीमान जी अपने सहकर्मी के घर जाते है। चाय पीकर आसने को होते हैं कि सहकर्मी की पत्नि शिष्टाचार वष कहती है भाई साहब खाना खाकर जाना ।श्रीमान ना नुकर की औपचारिकता पूरी कर मित्र की पत्नि के आग्रह को ठुकरा नही पाते और खाना के लिये रूक जाते हे। अगली बार सहकर्मी की पत्नि शिष्टाचार भूल जाती हैऔर श्रीमानजी को सौंफ सुपाड़ी खाकर संतोष करना पड़ता है। अतः भाइयो मेरा निवेदन है कि जनहित में यैंसा कोई कदम न उठायें कि शिष्टाचारर पर कोईआंच आये । शिष्टाचार समाज की रीढ है इसकी रक्षा के लिये हम सब तन मन से धन समर्पित करें।

 


वेणीशंकर पटैल ‘ब्रज’

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