Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मजदूर का बेटा

 

सड़को पर दौड़ते रिक्षे
रिक्षों में बैठे बच्चे
बच्चों की पीठ पर टंगे
रंग विरंगे बस्तों को देखकर
चहक उठता है
मजदूर का बेटा।
पल भर में उसे लगता है
उसकी पीठ पर टंगा है बस्ता
और ब्लैक बोर्ड के सामने बैठकर
वह सीख रहा है लिखना पढ़ना
लंच बाक्स को खोलकर
वह खाना चाहता है
घी चुपड़ी रोटी
और चटपटा अचार
कल्पनाओं की उड़ान
पूरी भर भी नही पाता
कि कानों में गूंजती है
मालिक की आवाज
दो कप चाय दे
पॉच नंबर टेबिल पर
सपनों की दुनिया से
बाहर निकल आता है
मजदूर का बेटा
जी हॉ मजदूर का बही बेटा
जो जवानी की दहलीज पर
बूढ़ा होता जा रहा है
बिना पढे ही वह समझता है
अभावों का अर्थषास्त्र.
दाल रोटी का गणित
और फटी कमीज का भूगोल
उसे पता है
षिक्षा के बढते कागजी कदम
गॉव गॉव की हर गली में
दीवार पर लिख जायेंगे
स्कूल चलें हम
मगर फिर भी दूर है हमसे
स्कूल का रास्ता
अच्छी तरह जानता है
मजदूर का बेटा।

 


• वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’

 

 

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