हमारे गॉव देहात में एक कहावत प्रचलित है कि ‘‘गरीब की लुगाई गॉव भर की भौजाई ’’। कुछ यही हाल हमारे देश के मास्साबों का हो गया है सरकार ने इन्हे भी गॉव भर की भौजाई समझ लिया है । जनगणना से लेकर पशु गणना तक , ग्राम पंचायत के पंच सेे लेकर संसद के सदस्य तक के चुनाव मास्साबों के जिम्मे है। किस गॉव में कितने बच्चों को पोलियो की खुराक देनी है, गॉव के कितने महिला पुरूषों ने नसवंदी करवाई है ,कितने बच्चों के जाति प्रमाण पत्र कचहरी की धूल खा रहे हैं। कितनों की समग्र आईडी रोजगार सहायक के कम्प्यूटर में कैद है। कितने परिवार गरीबी की रेखा के नीचे दबकर छटपटा रहे है और कितने गरीबी की रेखा को पीछे सरकाकर आगे निकल गये है। कितने परिवार घर में शौचालय न होने के कारण खुले में शौच करते है। कितने लोगों के आधार कार्ड नही बने कितनो के बैंक में लिंक नही हुये । बच्चों की छात्रवृत्ति,सायकिल ,गणवेश के लिये खाता खोलने के लिये बैंकों के कितने चक्कर लगाना है । इन सब बातों की जानकारी भला मास्साबों से बेहतर कौन जान सकता है। सरकार ने मास्साब की इसी विलक्षण प्रतिभा को देखकर पढाई को छोडकर शेष सारे काम दे रखे है। सरकार जानती है पढाई का क्या है? पढाई तो बच्चे को जीवन भर करनी है । शिक्षा विभाग की बैठकों में अधिकारी पढाई को छोड़कर इन्ही सब की बातें करते हैं । किसी गॉव को संपूर्ण साक्षर बनाना मास्साब को वायें हाथ का खेल लगता है। मास्साब कहते हैं कि हम तो सरकारी आदेशों के गुलाम हैं सरकार जो चाहे खुशी खुशी कर देते है।आखिर पगार काहे की लेते हैं। सरकार द्वारा दिये गये जनहितेषी कामों की बजह से माास्साब की ईमानदारी पर शक किया जाने लगा है। जब सरकारी स्कूलों में मास्साब कभी किचिन शेड ,ं शौचालय या अतिरिक्त कक्षा का निर्माण कराते हैं तो वे राष्टनिर्माण में इंजीनियर और ठेकेदार की भूमिका भी निभाते है।यही बात गॉव वालों को खलती है और वे मास्साब की ईमानदारी पर वेबजह ‘शक करने लगते हैं।
गॉवों में अक्सर लोगों की शिकायत रहती है कि मास्साब नियमित स्कूल नही आते ,मास्साब बच्चों को नही पढाते ? घर में कोचिंग क्लास चलाते हैं । अरे जनाब आपको पता होना चाहिये कि मास्साब के कंधो पर कितना बोझ है । लड़के भी क्या कम है वे स्कूल पढने नही रिसर्च करने आते है। लडके मास्साब के स्मर्टफोन का मजा लेते हैं व्हाट एप्पस पर भेजे वीडियो तसवीरों को भी वे शेयर करते हैं। मास्साब की फेसबुक टाइम लाइन पर वे कमेण्ट करने में भी पीछे नही है। कभी मास्साब को समय मिलता है और वे बच्चों को भारत का इतिहास पढाते हैं तो बच्चे भी क्लास की लड़कियों के इतिहास की जानकारी लेने मे व्यस्त रहते हैं। लड़कियो के इतिहास पर लड़को का शोध कार्य अनवरत चलता है इसके लिये थीसिस जिसे नासमझ प्रेम पत्र भी कहते है ंलिखने का कार्य भी करते हैं तभी उन्हे पी एच डी शादी अवार्ड हो पाती है। ये बात और है कि अधिकांश लडत्रको का इस कार्य में भूगोल विगडत्रने का खतरा रहता है। रिजल्ट भी खराब आता है जिसकी जिम्मेदारी मास्सबों पर थोपी जाती है। लड़को की गल्तियों का दंड मास्सबों की वेतन वृद्धि रोकर बसूल किया जाता है यही कारण है कि मास्साब कभी कभी नकल की खुली छूट दे देते हैं । इससे रिजल्ट भी बन जाता है और छात्रों की नजर में माास्साब की इज्जत भी बढ जाती है । इस प्रकार मास्साब एक पंथ दो काज निपटा लेते है।
मास्टरी के क्षेत्र में महिलाओं की चांदी है। मैडमजी सुबह से सज संवर कर स्कूल चली जाती है और चूल्हा चैका सासूजी के मत्थे मढ़ जाती है। कुमारियां स्कूल को किसी फैशन परेड का रेंप समझती है तो श्रीमतियां अपने घर गृहस्थी के काम काज निपटा लेती हैं । वे स्कूल समय में मटर छील लेती है पालक मेथी के पततों को तोडकर सब्जी बनाने की पूरी तैयारी कर लेती हैं। कभी कभार जब समय नही रहता तो स्कूल के मध्यान्ह भोजन की बची हुई रेडीमेड सब्जी पुडी भी घर ले जाती हैं। ठंड के दिनों में स्वेटर बुनने का सबसे अच्छा स्थल सरकारी स्कूल ही होता है जहॉ पर गुनगुनी धूप में बच्चों को मैदान में बिठाकर उन्हे जोड़ घटाने के सबालों में उलझाकर मैडम पति के स्वेटर के फंदों का जोड़ घटाना कर व्हाटएप्पस के मजा लेती हैं। कुछेक मैडमें अपने नन्हे मुने बच्चों को भी स्कूल ले आती है जिनके लालन पालन की जिम्मेदारी क्लास के गधा किस्म के बचचों की होती है । उनकी इस सेवा के बदले उनका प्रमोशन कृपांक के द्वारा अगली क्लास में कर दिया जाता है। जबसे सरकार ने शिक्षकों की भर्ती में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण एवं आयु सीमा का बंधन समाप्त किया है। तबसे सास बनी बैठी महिलाओं ने भी मास्टरनी बने की ठानी हैं । बहरहाल देखना ये है कि अब रसोई की कमान पुरूषों के हाथों में आती है कि नही?
मास्साबों के राष्ट निर्माण में किये गये कार्यो के एवज में उन्हे महिमा मंडित करने के लिये देश के महामहिम राष्टपति राधाकृष्णनजी के जन्मूदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है । स्कूली बच्चे चंदा करके मास्साब के लिये शाल श्रीफल और चाय विस्किट की व्यवस्था करते है। देश के राष्टपति द्वारा इसी दिन दिल्ली में होनहार शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। कुछ राष्टनिर्माता मास्साब यहॉ भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर टीवी चैनलों पर पुरूष्कार लेते दिख जाते है। पुरूष्कार लेने के बाद मास्साबों को गॉव गॉव गली गली में सम्मानित किया जाता है । इसी चक्कर में मास्साब कई कई दिनों तक स्कूल नही पहुच पाते । कभी कभी स्कूल के हाजिरी रजिस्टर पर हस्ताक्षर करके उसे भी गौरवान्वित कर आते हैं। ठीक भी तो है सारी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता का वोझ अकेले मास्साब के लिजलिजे कंधो पर नही डाला जा सकता । जबसे राष्टनिर्माण का दायित्व अंगूठा लगाने बाले जनप्रतिनिधि निभाने लगे हैं तबसे मास्साबों को शर्म आने लगी है। इतनी पढाई के बाद भी भी मास्साब अंगूठे की छाप नही बदल सके ? काश माससाबों का यह दर्द कोई समझ पाता।
वेणीशंकर पटैल
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY