डाकघर में मिलने बाले लिफाफे
अंर्तदेषीय पत्र और पोस्ट कार्ड
डाकिये के कंधे पर टंगे
पुराने थैले पर
सवार होकर करते थे यात्रा
मामा,बुआ और मौसी के घर से
हमारे घर तक
पहुॅच जाती थी
वेटियों की कुषल क्षेम
पिता के पास।
घर की गली से जैंसे ही गुजरता
पुरानी सायकिल पर
सवार डाकिया
तो वेरोजगार युवकों की आंखों में
चमक आ जाती
उन्हे लगता कि
आज जरूर आया होगा
उनका काल लेटर
अब कम्प्यूटर और मोबाइल ने
ई मेल और चैटिंग के जरिये
कितना नजदीक
ला दिया है विष्व को
तभी तो अमरीका
षोध कार्य के लिये गई
गॉव की बेटी माया
चैटिंग कर पूछती है
गॉव के हाल चाल
तो ग्राम पंचायत के
कम्प्यूटर के सामने
लग जाती है
गॉव बालों की भीड़
ठीक वैंसे ही
जैसे दूरदर्षन पर चल रही हो
रामायण या महाभारत
हर कोई देखना चाहता है
संचार क्रांति का नया रूप।
• वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’
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