Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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परछाईं

 

माँ,तेरे ही व्यक्तित्व की परछाईं हूँ मैं

रह गए जो सपने तेरे अधूरे,हाँ उन सपनों की

भरपाई हूँ मैं

तेरी ही बदौलत इस सुन्दर ज़मीं को देख पाई हूँ मैं,

माना,सपने जो देखे है तूने मेरे लिए

अभी पूरे न कर पाई हूँ मैं

पर कर यकीं और रख हौसला,

जीतूंगी ज़रूर ,क्योंकि माँ सभी कहते हैं,

तुझपर ही तो गयी हूँ मैं !!

 

 

 

विभूति चौधरी

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