क़यामत का होता है वह पल
जब चीख रही होती है इक औरत
अस्मत को अपनी बचाने के लिए;
और होती है कांपते अधरों पर
दया की भीख !
सबसे भयानक होती है वो आग
जो जला देती है उस ज़िन्दगी को,
जो दहेज़ ना ला पाई थी !!
सबसे धारदार होता है वो हथियार
जो मसल देता है उस नन्ही को पेट में ही,
जो कुछ महीनों बाद ज़िन्दगी से रूबरु होने वाली थी
सबसे काला होता है वह पर्दा जो
औरत की नज़रों के सामने पड़ा होता है,जो उसे मजबूर करता है
धुंधली ही दुनिया देखने को,
पर ‘सभ्य समाज’ तुझे फिक्र कहाँ !
औरत ही तो है
पर अपनी याददाश्त दुरुस्त रखना..
वो दिन भी आएगा,
जब वो क़यामत का पल तुझे भी डसने आएगा,
जब वो आग तुझे भी जलाने बढ़ेगी,
जब वो अँधेरा तुझे भी निगलने आएगा,
पर तुझे सहारा देने के लिए नहीं होगी तेरे पास,
बेटी,बहन,पत्नी और माँ!!
विभूति चौधरी
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