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रंग-पिचकारी ....लिए

 

-विनोद कुमार यादव
(गोरखपुर)
विधा-कवित्त(मनहरण)

 

 

 

रंग-पिचकारी ....लिए
प्रेम की पिटारी.. लिए,
ब्रज में धमाल .....करें
मदन-मुरारी ........हैं|

 

कान्हाँ की नज़र पड़ी
गोपियाँ तो भाग खड़ी,
छिपती ........छिपाती
बरसाने की दुलारी हैं||

 

गोपी-रुप धर ......लिए
बाहों मे जकड़ ....लिए,
बूझे नहीं राधा ...सखि
नर है कि नारी...... है|

 

हाथों मे गुलाल ...लिए
गाल लाल-लाल .किये,
ऐसे छलिये ……….…पे
राधारानी बलिहारी हैं||

 

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