Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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है वही लकीर अधूरी सी

 

शायद ख़ुदा को वक़्त न था, लिखी तक़दीर अधूरी सी
कोशिश-ए-मुशव्विर1कम न थी,बनी तस्वीर अधूरी सी

बड़े अरमां से सजाया था ये दिल, आशियाना तेरे लिए
तुम न आये इस मकां में , रह गयी तामीर2 अधूरी सी

क्या बताएँ तुम्हें, कहते हैं मेरी हथेलियाँ बेहद हसीन हैं
पर जिस रेखा से तुम मिलते , है वही लकीर अधूरी सी

स्याही से लिखने कहते हो तुम, मेरे इस अफ़साने को
खून-ए-जिगर से भी लिक्खा,पर रही तहरीर अधूरी सी

मेरे वक़्त से वक़्त काटकर, ख़ुदा ने तराशा उज़्व 3 तेरा
बता मिशाल दूँ किससे मैं तेरा, है हर नज़ीर4 अधूरी सी

है नज़र का वही रोग शायद , या जिगर का दर्द 'विभूति'
हकीम भी थक हार गए अब, रही हर तदबीर अधूरी सी

1.-चित्रकार, २.निर्माण, ३.अंग. ४. तुलना

 

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