Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"आखिर क्यूँ"

 

क्यूँ कल तक मौन रहा जब उजर रहा था कोई घर
क्यूँ आज अब गरज रहा जब आफत आई अपने पर
क्यूँ कुरूषेत्र इस जग में है क्यूँ नैन आंसुओं से सनता
क्यूँ बसंत बना है पतषर क्यूँ विलख रही हर वनिता
क्यूँ करुण रुदन किसी का पल पल सुख देता है
क्यूँ गरीब लाचार शब्द से हर षण चैन लेता है
क्यूँ छिपता किसी के मन में आगोश का भण्डार
क्यूँ रहता किसी के हस्त में जलता ये संसार
क्यूँ देखें सपने कोई बेबस को उजारकर
क्यूँ घुट घुट कर जलता कोई अपनो से हारकर
क्यूँ शमशान सा हो चला इस जग का हर कोना
क्यूँ पल पल मेरे पास हुआ जो ना था मेरा होना
क्यूँ दीरघ विपदा से सिमटी धरा कमकम्पी लेती है
क्यूँ दुखमयी वात से गुजरकर व्यार जताती स्नेही है
क्यूँ भर रही तिजोरी किसी की निर्थन के धन से
क्यूँ विलसती है विलासता अमीरी में हर मन से
क्यूँ सताता निर्बल को कोई तन में जब बल आया है
क्यूँ गुजरता उन राहों से जहाँ कलि काल बन आया है
क्यूँ उजर जाते है रिश्ते जब एक भाग्य साथ ना हो
क्यूँ बिछुर जाते है अपने जब तक वैभव हाथ ना हो
क्यूँ "आज़ाद" रहा यश तलाश किसी का एश्वर्य छीनकर
क्यूँ बना रहा लाख महल किसी का कलेजा चीरकर

 

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