Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बोल बेसहारो का कौन सहारा

 

मेरे हृदय के स्पंदन में , आप मन मंथन में
चिर पीराओं ने क्यों मारा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

चमकी चपला उर अंतर में , गया कालकर्म भंतर में
जला अग्नि में मैं क्यों सारा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

कुसुम कुसुम कली जली , तुष्य वात में बात हली
खिन्न भिन्न क्यों मन हमारा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

पार्थ रण छोड़ गया , धर्म का दिल तोड़ गया
उठा मोह में क्यों जग सारा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

स्वर मलिन हो गया , भावहीन चित्त भया
"आज़ाद" दर्दो में दहाड़ा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

 

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