Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हां देव

 

ये आकाश क्यों फटा है?
कोई तारा कहाँ गिरा है?
बदला ये नाम क्यों रे?
नीर क्यों जला है?
मीन क्यों तरफे है?
लीन क्यों गरजे है?
सिंह क्यों दहारे?
कुछ तो मुझे बता रे
परमपिता कहाँ है?
जो मुझसे खफा है
नाराजगी ना दिखारे
जो जीता तेरे सहारे
उपवन क्यों उजारे?
चितवन क्यों सवारें?
अब शांत भी हो जा
तुम जीते हम हारे
ये जग क्यों बिछरा?
मैं क्यों आगे निकला?
"आज़ाद" जाने क्या रे?
डूबा किस चाह रे?
शून्यमय उषा भई
द्वंद में शाम गई
दिन ढला जल्दी से
मैं बढा किस राह रे?
स्वप्न मिथ्या क्यों लगा?
मोह मिथ्या क्यों बधा?
क्यों जगा अपनत्व?
मुझको कुछ थाह दे
छू मेरी स्मर्तिया
वेदनायों को सहला दे
"आज़ाद" खरा अजनबी सा
कदमो में उसे पनाह दे

 

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