Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अफ़सोस तुम्हे तो आज भी है–विजय ‘मनु’

 

 

repentance


अफ़सोस तुम्हे तो आज भी है
चाहत को बेबस पा करके,
मुझ पर हँसते तुम जी भरकर,
अफ़सोस तुम्हे तो आज भी है,
जिन्दा हूँ कैसे मैं मरकर,
कब तूने चाहा भला मेरा,
जिव्हा तलवार से मारा है,
तेरी आँखे ताँके क्षण-२ में,
ये शख्स आज क्या हारा है,
तेरी नज़रें झुकी है तब केवल,
थक हार गए मुझसे लड़कर,
अफ़सोस तुम्हे तो………..
आंख के पानी से मेरे,
तुमने तो प्यास बुझाई है,
मेरे घरोंदो में आग लगा,
निज जिस्म करी सिकाई है,
देखी घृणा तेरी आँखों में,
भागा न तुझसे मैं डरकर,
अफ़सोस तुम्हे तो………..
बदनाम किया तूने जब चाहे,
मिटा न पाए वजूद मेरा,
तुमने चाहा सदा बना रहूँ,
गूंगा अज्ञानी दास तेरा,
तुझे जगह छोड़ते देखा है,
जहाँ खड़ा मिलु तुझे मैं तनकर,
अफ़सोस तुम्हे तो………..
तेरे हर पग एक प्रहारी ने,
मुझको तो साहस दिया भारी,
तेरे एक साथ के बदले में ,
अनगिनत फरिश्ते मेरे यारी,
अपने में गंध तुझे आने लगी,
खड़ा ‘मनु’ सामने निर्मल बनकर,
अफ़सोस तुम्हे तो………..

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