सरलता का प्रवाह
जो ह्रदय में बहकर
उसके केन्द्र-बिन्दु में
चाहे एक, केवल एक कोंपल को
स्नेह से स्फुटित कर दे,
और मैं अनुभव करूँ
उस सरल स्नेह को बहते
हर किसी के प्रति मेरे अंतरतम में,
प्रभु, यही, बस यही वरदान दो मुझे ।
सरलता का आभास
जो पी ले मेरा समस्त अवशेष अहम्
और कर दे मुक्त मुझे
मेरे-तेरे, ऊँचे-नीचे, अपने-पराय से, कि
जी सकूँ मैं निर्भय अपने अंतरमन में
झंकृत हो कर ॐ की सुरम्य सुर में,
वर दे अव्ययी प्रणव
बस, मुझको ऐसा वर दे ।
सरलता का व्यवहार
मेरी वृतियों में व्याप्त हो वायु-सा,
तुम दे दो मुझको निवृति का दान
जो किसी विधि मिटा दे
प्रत्येक संपर्क में संचित
अनावश्यक, असाधारण स्पर्धा को,
अवांछनीय
विभक्त करती विध्वंसी दूरियों को,
वर दे ज्ञान के सागर मुझको
बस, ऐसा वर दे ।
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-- विजय निकोर
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