अजी! सुनते हे आप आज एक लिफफ़ा आया हे.मेने फ्रिज के उपर रख दिया हे.शायद दुबई से आया हे.
बहुत दिनो बाद कोई पत्र आया हे.चलो लंच करके खोलते हे.लंच करके आराम से पत्र खोल कर देखा.मात्र एक छोटा सी लाइन थी. ताऊजी आपके लिये.साथ एक ड्राफ्ट बीस हजार का मेरे नाम से था.लाइन के नीचे लिखा था.नोटोरीयस.
मे बडी उलझन मे सोच मे पड गया .यार.चलो ड्राफ्ट तो ठीक हे किंतु ये नोटोरीयस कौन हे?ये इतनी बडी राशि का ड्राफ्ट मुझे क्यो भेजा?
क्यो भाइ ये नोटोरीयस कोन हे?
मे किया जानू?
यार.देखो केवल एक लाइन लिखी हे.पते के नाम पर लिखा हे नोटोरीयस.साथ मे बीस हजार का ड्राफ्ट मेरे नाम से हे.
अरे जमा कराओ काहे को टेन्शन पाल रहे हो?एक तो आप सबसे हँसी खुशी से बोलते हो और बहुत सालो से कई मित्रो और रिश्तेदारो के बच्चे जो कोटा कोचिन्ग करने आते हे उनकी देख रेख भी करते आ रहे हो.उनमे से ही कोई पुराना शार्गिद होगा.आज बडा आदमी बन गया होगा तो प्रेम से इतने रुपये भेज दीये.
मुझे खोया खोया देख श्रीमतीजी बोली.अरे आप 74साल के हो चुके हो? आप बीमार भी हो. आप वेसे भी आजकल भूलने भी लगे हो.कई बीमारीयो से जुझ' रहे हो.अब ये क्या नई फफुन्द आ गई?आप तो टेन्शन मे हो मुझे भी टेन्शन मे डाल दिया.आप या तो ड्राफ्ट बैंक मे जमा करो या फाड़ फेको.
मुझे समझ मे नही आ रहा था कि मे क्या करू क्या नही करू.ये नोटोरीयस कौन हे?मेरी दिन रात कि नींद भी उड़ चूकी थी.मुझे पेसे क्यो भेजे.एक तरफ़ तो मन कह रहा था कि पेसे डालो बैंक मे और भूल जाओ कि कौन हे नोटोरीयस ?
किंतु आत्मा धिक्कार रही थी कि केसे किसी का पेसा मे ले लू.आत्मा रह रह कर धिक्कार रहीथी कि मेने लिफाफा क्यो खोला?इसे तो वापिस लोटा देता तो ही ठीक था.अचानक ध्यान आया अरे लिफाफे पर तो एड्रेस होना चाहिये साथ ही फोन और मोबाइल नम्बर भी होना चाहिये.
अरे. सुनना भई! इसका लिफाफा कहाँ गया?
जहन्नुम मे गया.जब से लेटर आया हे .तब से न तो खुद को चेन हे न मुझे चेन लेने दे रहे हो ?
मुझे वेसे भी श्रीमतीजी से एसे ही जवाब की आशा थी.
अब मे ड्राइंग रुम का दरवाजा बंद करके बेठ गया कि कब श्रीमतीजी मंदिर जाये और मे डस्टबिन मे हाथ डालू और फटे कागज देखू.
जेसे ही श्रीमतीजी मंदिर जाने के लिये निकली मे फटाक से डस्टबिन ड्राइंग रुम मे ले आया.एक पुराना अखबार नीचे रख कर लिफाफे के टुकडे देखना चालू किया.कुछ टुकडे मिले.बहुत जतन से टुकडे जोडे.पता तो स्पष्ट था.नाम के स्थान पर था:क.शर्मा (नोटोरियस)
अब ये एक नया टेन्शन हो गया कि ये क.शर्मा कौन हे?कोष्टक मे नोटोरियस भी लिखा था बहुत मन लगा कर सोचा किंतु बिल्कुल याद नही आया.
इतने मे श्रीमतीजी का आगमन हो गया.आते ही जेसे बादल फट पडा.अरे ये डस्टबिन यहा केसे?अब वातावरण समभलना मुश्किल था.ये जो भी व्यक्ति था सचमुच नोटोरियस ही था जिसने व्यक्तिगत जीवन मे भीअब हलचल मचा दी थी.पूरे समय बस ये कौन हे नोटोरियस ?कौन हे नोटोरियस?कौन हे नोटोरियस?
अपनी आत्मा की आवाज सुन कर मेने फेसला लिया कि ड्राफ्ट लिफाफे पर लिखे पते पर वापस भेज देते हे.
तुमने गलत पते पर पत्र भेजा हे.इसे सही स्थान पर भेजो.मेने ड्राफ्ट भी भेज दीया.
कुछ दिन चैन से बीते.फिर लिफाफा आया.अब ड्राफ्ट तीस हजार का हो गया था.साथ ही पत्र भी था जिसमे लिखा था .मेने सही पते पर पत्र और ड्राफ्ट भेजा था.आप प्लीज ड्राफ्ट जमा करे.मे अब कमाने लग गया हु.पेसा आपके अकाउन्ट मे जमा होते ही मुझ मानसिक शांति मिलेगी.आपका क.शर्मा (नोटोरीयस).
मेरे जीवन मे भुचाल आ गया था.तुझे तो शांति मिलेगी.मेरा तो सुख चैन छीन गया हे.हे भगवान तुम कौन हो?मेरे पास भगवान का दिया सब कुछ हे.फिर मे क्यो किसी गेर आदमी का पेसा रख लू.जिसको मे जानता तक नही हूँ.
मेने ड्राफ्ट और लेटर वापस भेज दिया और लिख
दिया कि अरे भाई भगवान के लिये अब तो इसे सही स्थान पर भेजो और मुझे माफ करो.मुझे और ज्यादा बीमार मत करो.
कुछ दिनो पश्चात वापिस एक पत्र आया .उसमे चालीस ह्जार का ड्राफ्ट था .पत्र मे लिखा था.पत्तू ताऊजी.छोटी भेंट स्वीकार करो.क.शर्मा (नोटोरीयस).
मेरा घर परिवार मे शुरू से नाम पत्तू था.अत: ये तो लग ही रहा था कि ये सज्जन कोई करीब का ही हे.लेकिन आखिर ये हे कोन?
दिमाग पर जोर बड़ता जा रहा था.टाइम टाइम पर आते इन पत्रो ने परिवार मे टेन्शन भी बडा दी थी.
मेने और श्रीमतीजी ने बहुत दिमाग लगाया.बहुत याद करने की कोशिश की किंतु कोई याद नही आया.थक हार कर उसे फिर ड्राफ्ट लोटाते हुवे लिखा कि हम खुद तुम्हे पहचान नही पा रहे हे.हम बीमार हे हमे कुछ भी मत भेजो.
कुछ दिन शान्त रहे.अचानक एक पत्र आया.ताऊजी मे 27 अक्टूबर को सुबह फ्लाइट से दिल्ली पहुच रहा हु.दिल्ली से दिन मे गुजरात सम्पर्क क्रांति से रात 8 बजे कोटा घर पहुच रहा हु. कोच A-1 मे बर्थ नम्बर वन हे.प्लीज आप लेने मत आना? आपका कही भी जाने का कार्यक्रम हो तो निरस्त कर देना. मे खुद घर पहुच जाऊन्गा.
फिर ब्लडप्रेशर बड़ चुका था.नाम के साथ साथ इसे घर केसे पता चला ?
अब तो बस 27 अक्तूबर तक राह देखनी थी?कौन हे ये नोटोरियस?
मन मे उतावली और रोमांच बड़ता जा रहा था?
कब आयेगी ये 27 अक्तूबर ? क्यो ये दिन एक एक करके आते जाते हे.एकदम से 27 अक्टूबर काहे नही आ जाता.
फिर कुछ पत्र इसी प्रकार से आये कि 27 अक्तूबर को कही मत जाना?
खैर 27 अक्तुबर भी आ गई.सुबह से शाम तक बहुत बैचेनी रही.
रात 7 बजे ही रेल्वे स्टेशन प्लेटफार्म नम्बर 2 पर पहुच गया.गुजरात सम्पर्क क्रांति सही समय पर आ भी गई.मे कोच ए 1 के बाहर खड़ा हो गया.किंतु कोच से कोइ नही उतरा.खैर भारी मन से घर आया.जेसे ही घर पहुचा श्रीमतीजी ने कहा आपसे कोई युवक मिलने आया हे.सामान भी हे.ड्राइंगरुम मे बिठा दिया हे.
जेसे ही ड्राइंगरुम मे घुसा एक युवक उठा और चुपचाप से चरणस्पर्श किये.
मे तुम्हे पहचाना नही?
आप कुछ याद करने की कोशिश करे?
मुझे पता था कि आप मुझे लेने जरूर आयेगे अतएव मे पिछले गेट से प्लेटफार्म पर उतर गया था.मे कनिष्क .कनिश्क शर्मा.
तुम्हे... मे बिल्कुल नही पहचाना?
आप बीस - पचीस साल पीछे का समय याद करे.आपके मकान मे आपके कमरे के सामने ही तो हम रहते थे किराये से.मेरा कोटा मे ही जन्म हुवा था.इसी घर मे तो मेरा बचपन गुजरा हे.आप कुछ याद करे?सब याद आजायेगा.
मुझे कुछ याद कियो नही आ रहा हे?हे भगवान
मेरी सहायता करो.
पत्तू ताऊजी ! आप कोशिश करो.वो ऊपर छत पर खडे होकर सूरज को उगते देखना. पक्षीयो को छत पर चुग्गा डालना.फिर मे नहा धोकर आपके यहा से पोहे जलेबी का नाश्ता करके स्कूल जाता था.स्कूल से आने के बाद घर तो बाद मे जाता था पहले आपके यहा खाना खाता था.शाम को गार्डन.मंदिर.जू.तालाब की पाल.बोटिंग.शाम को छूक छूक गाडी देखना.
कभी कभी आप अपने दोस्तो एवं रिश्तेदारो के यहा भी मुझे ले जाते थे.मे वहा बहुत शरारते करता था.आप डाँटते लाते थे.शायद आपका मन मेरे बगेर लगता भी नही था.
जेसे जेसे वो बोलता जा रहा था.दिमाग मे यादों की परतें खुलती जा रही थी.
अरे! यार तु ही तो वो नोटोरीयस हे.ओह!गोड बचपन मे मुझे कितना सताता था?मेने ही तो तुझे नोटोरीयस नाम दिया था.अरे!नोटोरियस कितना बडा हो गया ह यार तु ?
उठ कर गले लगते हुवे वो बोला और समझदार भी.अब तो प्रेम से ड्राफ्ट जमा करे.
नोटोरीयस बचपन की यादों की कोपले अब सचमुच नोटोरियस विशालकाय व्रक्ष बन चूकी थी.क्योकी नोटोरियस अब 25 साल बाद सामने था.
विजयकांत मिश्रा
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