मौसम के रूठने की ख़बर अज़नवी न थी ,
लेकिन फ़िज़ाँ में इसकी कहीं सनसनी न थी ।
उपवन उजाड़ के वो मेरा क्यों चली गईं ,
मेरी तो आँधियों से कभी दुश्मनी न थी ।
बेमानी हो गये थे मदारी के करिश्मे ,
चेहरों पे नन्हे मुन्नों के आई हँसी न थी ।
आई थी एक बहार मेरी बनके हमसफर ,
ये ख़्वाब था हंसीन मगर ज़िन्दगी न थी ।
ये नूर था ख़ुदा का मैं उस दर पहुँच गई ,
जिस दर से इस जहाँ में विभा वापसी न थी ।
विजयलक्ष्मी विभा
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