Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कथापर्व -- कहानी संग्रह

 

विकेश निझावन, कथापर्व -- कहानी संग्रह
विकेश निझावन साहित्यिक क्षेत्र का एक स्थापित एवं सम्मानित नाम है।कई कहानी संग्रह उनके खाते में दर्ज हैं।पारूल प्रकाशन दिल्ली से उनका सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह द्यकथापर्वद्य आया है।संग्रह की सभी कहानियां अभी हाल में नहीं लिखी गयीं।इसमें वे कहानियां भी शामिल हैं जो कभी सारिका धर्मयुग साप्ताहिक हिन्दुस्तान तथा कहानी जैसी स्तरीय एवं लोकप्रिय पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं प्रशंसित हुई थीं।लेकिन कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जो अभी गूंज वागर्थ पल प्रति पल तथा हरिगंधा जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
इन कहानियों को द्यकथापर्वद्य शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित करने का कोई कारण कहानीकार लेखक ने भूमिका के रूप में प्रकट नहीं किया है।परन्तु जो पाठक इस संग्रह की प्रथम कहानी पुनर्जन्म से आरंभ करके अंतिम कहानी मुख़तारनामा तक पहुंचेगा वह पाएगा कि सभी कहानियों की पृष्ठभूमि में करूणा की एक नदी बहती है बहुत ही धीमे प्रवाह के साथ।एक ऐसी नदी जो अपने आप में बाढ़ का रूप धारण करके ध्वंस का राग तो नहीं गाती अपितु अपनी तरल-गहन संवेदना को जिजीविषा का रूप देकर नए-उजले पथ पर बढ़ने को प्रेरित करती है।
पर्व का शाब्दिक अर्थ होता है - उत्सव अथवा त्यौहार ।त्योहार के साथ जुड़ा होता है -हर्ष-उल्लास और सुख।सुख जीवन के हिस्से में बहुत कम आता है।पर्व भी वर्ष भर में कम ही होते अथवा आते हैं।सुख पाने के लिए ठोकरें खानी पड़ती हैं।प्रत्येक पर्व के साथ ऐसी कोई न कोई कथा जुड़ी रहती है जो अंधकार एवं उत्पीड़न का इतिहास होती है।विजयदशमी दीपावली एवं होली ऐसे ही पर्व हैं।कथापर्व में शामिल कहानियां भी दुखों एवं विपदाओं की कठोर भूमि पर खुशियों और सुखों के छोटे-छोटे सुंदर एवं सुगन्धित फूल उगाने का एक कलात्मक प्रयास है।विश्व की जितनी भी श्रेष्ठ कहानियां हैं उनकी उत्कृष्टता के पीछे करूणा एवं संवेदना की कलात्मक अभिव्यक्ति ही सबसे महत्वपूर्ण कारण होता है।यों तो यह संग्रह इतना रोचक है कि इसे एक उपन्यास की तरह पढ़ा जा सकता है - शुरू से लेकर आखिर तक।सभी कहानियां स्वयं में स्वतंत्र रचनाएं होते हुए भी संवेदना के महान सूत्र से गुंथी हुई हैं।परन्तु इस संग्रह में शामिल छथ कहानियां जो भी पढ़ेगा मुझे लगता है नहीं भूल पाएगा।वे कहानियां हैं- वागर्थ में प्रकाशित द्यगुल्लक' पल प्रति पल में प्रकाशित द्ययह सिर्फ इबारत नहीं' वर्तमान साहित्य में प्रकाशित द्यगठरी' कादम्बिनी में प्रकाशित द्यपुल के दूसरी ओर' प्रेमचंद प्रतियोगिता में पुरस्कृत द्यउसकी मौत' संडेमेल में प्रकाशित द्यऔरत'।लेखक को नारी मनोविज्ञान की गहरी पकड़ हासिल है।संभवतथ उसका मन नारी पात्रों के चित्रण में खूब रमता है।यही वजह है कि नारी चरित्र वास्तविक से भी कहीं अधिक वास्तविक नज़र आते हैं।
उपर्युक्त सभी कहानियां शिल्प एवं कथ्य की दृष्टि से बेजोड़ हैं ही परन्तु सहजता इनका एक अनोखा गुण है।इनमें सब कुछ सहजता से घटता है।जैसे धूप उतरती है आंगन में जो तपाती भी है प्रकाश भी देती है।जिसकी बेहद ज़रूरत भी होती है और जिससे बचने को भी मन चाहता है।इन कहानियों में न तो बिम्बों एवं प्रतीकों का आडंबर है और न ही घटनाओं का संजाल।बनावटी भाषा के माध्यम से विउताा दिखाने की ललक भी नहीं है।यहां कहीं कोई जल्दी नहीं।विस्फोट भी होता है तो इतनी सहजता से कि जिसका धमाका गुम हो कर रह जाए।भीतर ही भीतर घुटते आंसुओं की तरह।आंसुओं को पीछे धकेल कर होंठों पर बिछती दर्दीली मुस्कराहट की तरह।बिना कुछ कहे सब कुछ कह देने वाले प्रकम्पित अधरों तथा पलकों पर अटके थरथराते आंसू की तरह। कहानियों के माध्यम से पर्व का-सा आनंद उठाने की इच्छा रखने वाले पाठकों के लिए है-कथापर्व।
... ...
रामकुमार आत्रेय

प्रकाशक- पारूल प्रकाशन 889 - 58 त्रिनगर दिल्ली-35

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ