Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिल को समझाता हूँ

 

बैठे बैठे यूँ ही दिल को समझाता हूँ
अपने दिल की बेबस कहानी बतलाता हूँ
दिल की खुशिया हो...... या फिर अश्रु ढेर सारे
बैठे बैठे यूँ ही शब्दों की माला बनाता हूँ ......
दिल की एक कहानी तुमको सुनाता हूँ|
दिल की एक कहानी तुमको सुनाता हूँ|
मेरी बाते सुनकर कुछ लोग बोले हैं
आप सहसा यूँ ही कविवर कब होगये हैं ?
उनकी बातें सुनकर मेरा दिल ये बोला है ....
बैठे बैठे यूँ ही खुद को समझाता हूँ
अपने दिल की दास्ताँ तुमको बतलाता हूँ
था मैं नहीं कवि कभी , था मैं नहीं लेखक कभी
अपने दिल के अरमानो को में शब्दों में पिरोया है
आपकी चाहत ने मुझको आपसे जोड़ा है
आप ही ने मुझको कविवर यूँ बोला है
आप ही ने मुझको कविवर यूँ बोला है ।

 

 

 

---विनय कुमार शुक्ल

 

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