दोस्तों | जीवन में हम सभी का सामना कभी असफलताओ से, तो कभी सफलतो से होता रहता है । आप कहोगे की इसमें कौन सी नयी बात है , ये तो सभी के साथ होता है। कभी कभी हम असफलताओ से इस कदर परेशान हो जाते हैं की हमें लगता है की आखिर हमने कौन से पाप किये थे जो ये दिन देखने पड़ रहें हैं । फिर हम अपने मन को समझाते हुए ये कह लेते है -"हर किसी का भाग्य अलग अलग होता हैं , शायद हमारा भाग्य ऐसा ही है | पर वस्तुतः ये सब हमारे कर्मो का ही फल है । जीवन कर्मो की एक श्रंख्ला हैं । और कर्म हमारे द्धारा निर्धारित किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किये जा रहे प्रयासों का ही नाम है । इस प्रकार हम कह सकते हैं की कर्म हमारे द्धारा लिए गए निर्णयों से ही निर्मित होता है । और कर्म का फल तो अवश्य मिलता है कभी किसी को जल्दी तो कभी किसी को विलंम्भ के पश्चात । इसलिए मनुष्य का भाग्य उसके ही द्धारा वर्तमान में लिए गए निर्णय से भविष्य में प्राप्त होने वाला फल है । आप स्वयं एक बार विचार कीजिये की आज हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा ? क्या हमने पहले कुछ ऐसा निर्णय लिया था जिसे ना लेता उस समय तो आज हम ये ना सहन करना पड़ता । सच्चे मन से विचार करेंगे तो आपको अवश्य कुछ अवसर , कुछ निर्णय याद आ जायेंगे । परन्तु अब आप भूतकाल में जाके कुछ बदल तो नहीं सकते । हमारा जीवन इस तरह का है की हम एक ही दिशा में जा सकते हैं।
अब आप लोग सोच रहे होंगे की आखिर फिर हमें करे क्या ? वस्तुतः जिंदगी एक जंग की तरह है और इसमें एक सच्चे योद्धा बनना ही मूल उद्देश्य है । आप सभी गंगा पुत्र भीष्म से परचित है यदि उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा न लिया होता तो क्या महाभारत का युद्ध होता ? फिर भी उन्होंने जीवन भर अपने द्धारा लिए गए निर्णय का एक सच्चे योद्धा बनके सामना किया । धर्म के परमज्ञानी युधिष्ठिर जी भी इस काल चक्र से नहीं बच पाये फिर भी उन्होंने जिंदगी भर अपने कर्तव्य का वहन किया , देर में ही सही पर विजय उनकी एक दिन अवश्य हुई । इसलिए सच्चे मायने में देखा जाये तो भाग्य को कोसना व्यर्थ है । हम सभी को निर्णय लेने से पहले विचार अवश्य करना चाहिए , परन्तु एक बार निर्णय ले लिया तो उसे सहर्ष स्वीकार करना ही हमारा कर्तव्य है ।
अक्सर ऐसा होता है की हम किसी विषय को आधार बना के उसमे भविष्य के सपने सजा लेते हैं और जब उस राह में मुश्किलें आने लगती है तो हम सोचते है- काश , हमने किसी और विषय में कुछ किया होता तो जल्दी सफलता मिल जाती । पर जिंदगी हमें दूसरा अवसर नहीं देती । हम भूतकाल में जाके , कुछ उलट फेर नहीं कर सकते । हमारे पास तो सिर्फ एक ही रास्ता है - " निर्णय लेने से पहले विचार , लक्ष्य प्राप्ति के लिए अथक प्रयास और फिर सहर्ष परिणाम स्वीकार | " क्यूंकि जीवन की राहें सिर्फ एक मार्गी हैं , इसमें पीछे मुड़ मुड़ के देखना , परेशान होना , भाग्य को कोसना ये सब से कोई फ़ायदा नहीं । अपितु ये सब तो हमारी आज की खुशियां भी छीन लेते हैं । और दुःखी इंसान अपने आने वाले समय को भी बर्बाद कर डालता हैं । इसलिए आईये हम सभी मैथिलीशरण गुप्त जी कुछ पगंतिया स्मरण में लाये -
" नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को । "
With this, Good bye friends , Enjoy the Unidirectional life with happiness as well as acceptance.
--------------विनय कुमार शुक्ल
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