Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन की असल परीक्षा : धैर्य के साथ कर्म

 

दोस्तों। मैं आपके समक्ष फिर उपस्थित हूँ एक नए विषय के साथ और आशा करता हूँ की आपलोगों को ये अवश्य पसंद आएगा ।
अक्सर हम सभी के साथ ऐसा होता हैं की हम बहुत मेहनत से काम करे और हमें उसका कुछ भी फल न मिले या फिर हमारी अपेक्षा के अनुरूप फल न मिले । दूसरी ओर देखा जाये तो हमारे पूर्वज कह गए हैं की "मेहनत का फल सदैव मीठा होता है " । अब ऐसे में आप ही बताईये मैं क्या सच समझूँ । यदि आप किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पिछले पांच-दस वर्षो से लगातार प्रयास रत हैं और आपको अब तक कोई सफलता नहीं मिली , तो क्या आप मेहनत के फल को मीठा मान पायेंगे ? आपने सच्ची लगन और निष्ठा के साथ अपना कर्म किया , अपनी द्रष्टि सदैव लक्ष्य पर रक्खी और अचानक कोई बड़े बुजुर्ग आप से कहते हैं आके -- " बेटा । तुम्हारी मेहनत में कमी है इसलिए सफलता नहीं मिली तुम्हे अब तक " । अब आप ही बताईये कैसा लगेगा आपको ?
कुछ समय एकान्त में विचार के पश्चात आप ये निर्णय लेंगे की शायद "हमारा समय ही ख़राब है , इसलिए किसी से कुछ कहने के बजाय , हम लोगों से मिलना ही बंद कर दे , फिर ऐसी बातो का मुझे सामना नहीं करना पड़ेगा । " सही है , बहुत उत्तम विचार । न रहेगा बांस न बजेगी बासुरी ।
पर क्या आप अपने मन को शांत कर पाये हैं । शायद नहीं , कुछ ही समय में आपका मन कहता है आपसे - " यार क्यों ? मेरे ही साथ ऐसा क्यों ? मैं इतने वर्षो से प्रयास कर रहा , पर कुछ हासिल क्यों नहीं हुआ अब तक ? "
श्रीमद् भगवत गीता में श्री कृष्ण ने कहा है की हमें सदैव कर्म पर धयान देना चाहिए , फल के बारे में सोचना नहीं चाहिए । क्या आपने सोचा कभी की उन्होंने क्यों ऐसा कहा ? क्यूंकि हम सभी की आदत है की हमारा ध्यान हमेशा फल की चाहत में होता है और जिसके कारण हम कुछ समय ही कर्म करके अधीर हो जाते हैं , की फल तो कुछ मिल ही नहीं रहा । वस्तुतः जीवन की असल परीक्षा धैर्य के साथ कर्म करना हैं । कर्म तो कोई भी कर सकता हैं । कोई एक दिन , कोई एक साल तो कोई दस साल । प्रमुख केवल ये नहीं की कितनी श्रद्धा और निष्ठा के साथ काम किया अपितु कितने धैर्य के साथ काम किया। धैर्य का मतलब के कदापि नहीं की आपने अपने काम की दर कम कर दी और उसको लम्बे समय चलने दिया , बल्कि पूरी लगन के साथ , धैर्य के साथ , असफलतो से डरे बिना कर्म करना ही जीवन की असली परीक्षा हैं | क्यूंकि अक्सर ऐसा हो जाता हैं की जितना समय हम सोचते हैं की इतने समय में हमें लक्ष्य मिल जायेगा , उससे बहुत अधिक समय लग जाता हैं । धर्मराज युधिस्ठिर को राज्य की प्राप्ति सत्तर वर्ष की आयु के बाद हुई । अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति को पचास वर्ष की आयु के बाद समफलता मिली । पर ध्यान दीजियेगा की सफलता जितना देर में मिली उतना ही बड़ी मिली , इसलिए कहा गया है की "सब्र का फल मीठा होता है " । कुछ अच्छा करने के लिए समय अधिक लग जाता हैं , पर सच्चे मन से किया गया कर्म व्यर्थ नहीं जाता । इसलिए हमें धैर्य के साथ कर्म में लगे रहना चाहिए ।
खुश रहिये , कर्म में लगे रहिये , फिर मिलते हैं.……………………………।

 

 


-- विनय कुमार शुक्ल

 

 

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