स्वर्ण मुकुट में जिसने है अपना आवास बनाया
वही "कलि " फिर "कलियुग " साथ में है लाया।
हो गए जब पराये इंसान एक दूजे से ...
लोगो का प्यार पशु पक्षियों में अधिक उमड़ है आया
इंसान ने इंसान से कभी दिल न है लगाया
हर घर में, हर मन में जब "कलयुग" नजर है आया।
रिश्ते नाते भूल हो गए जब सब खुद मशगूल
पैसो को माँ बाप तो कभी पैसो को भाई बनाया
हर घर में, हर मन में जब "कलयुग" नजर है आया।
लालच ने जब सबको अपने गले है लगाया
स्वार्थ में ही जब सबको परमार्थ नजर है आया
उस स्वर्ण मुकुट की चाहत ने हम सबको "कलि" बनाया
हर घर में , हर मन में जब "कलयुग" नजर है आया
हर घर में , हर मन में जब "कलयुग" नजर है आया।
लेखक - विनय कुमार शुक्ल
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