देश मेरा लुट गया है आज सब के सामने
आजादी गिरवी है आज कौड़ियों के दाम में।
शहीदों की रूह सरकारी कागजों में है दफ़न
विधवाओं के घर बिके है आज मेरे गाँव में।
दूध घी नदी की बात अब पुरानी हो चली
लौटते है अब गधे सूखे हुए तालाब में।
खेतिहर को हर गई खेती, कोने में टूटे हल है
घोड़े बेच सो रहे है चूहे जो गोदाम में।
बाड़ ही चरने लगी है, खेत और खलिहान को
राजनेता बोलते है गुंडों के अंदाज में।
आज़ादी की मालियत आज मुझसे पूछिये
छेद ही गहने बने है आज मेरी नाव में।
विनोद कुमार दवे
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