Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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डर लगता है

 

डर लगता है इन रातों से, इन रातों से डर लगता है,
कब कौन कहाँ कैसे होगा, इन बातों से डर लगता है।

 

पलकों के सपनों को अपने अश्कों में बह जाने दो,
इन सौंधी-सौंधी आँखों के ख़्वाबों से डर लगता है।

 

वो शख़्स अभी जो गुजरा है, उसके पाँवों में अंगारे थे,
कैसे चलता जाऊँ मैं, इन राहों से डर लगता है।

 

वो यार मुझे तो कहता है, दिल की बातें छुपा के रखता,
तेरे दिल में दबे-दबे उन राज़ों से डर लगता है।

 

'दवे' दीवानों की दुनिया में कैसे नफ़रत ज़िंदा है,
नफ़रत की ज्वाला उगल रही उन आँखों से डर लगता है।

 

पल-पल रूप बदलती दुनिया, लोगों के कितने चेहरे है,
खंजर से और लोग डरे, मुझे मीठी बातों से डर लगता है।

 

 

विनोद कुमार दवे

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