आँधियाँ पूछती नहीं रास्ता फ़िज़ाओं से
पंछियों ने कब मांगी परवाज़ हवाओं से।
धधकती कोशिशों को बुझाने की औकात नहीं इनकी
डर न जाना रात को गरजती घटाओं से।
सुलगने दो सीने में सुलगते अंगारों को
कब तक लोगे रोशनी बेनूर सितारों से।
ऐ नाविक तू बीच समन्दर जंग का एलान कर
मांगना मत कोई मदद इन किनारों से।
हर मुश्किल को मात देगा हौसला बनाए रख
हार कर न बैठना इन सख्त सज़ाओं से।
उनको दुआ करने दे तू धार दे कटार को
किसने जीती जंग इन कोरी दुआओं से।
विनोद कुमार दवे
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