तू गया आँखों से तेरी रानाई नहीं जाती
ख़ुद की ख़ुद से दूरी अब मिटाई नहीं जाती
अदा कर दूँ हर अहसान मय ब्याज के सब का
पर दिल की उधारी कभी चुकाई नहीं जाती
गौहर बाजी के तरीके मुझे कौन सिखाएगा
सीप की दुखती रग मुझसे दबाई नहीं जाती
तू ये घाव लेकर कहाँ घूमता है पगले
दरिंदों को दरिंदगी दिखाई नहीं जाती
दो घूँट पानी को तरस रहा हूँ मैकदों के बाहर
प्यासे को शराब पिलाई नहीं जाती
इंतजार में ही रहेगा ‘दवे’ सदियों तलक इंसाफ के
बुरे लोग चले जाते हैं, बुराई नहीं जाती
विनोद कुमार दवे
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