Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रात की रंजिशें

 

रात की रंजिशें मिटाकर तो देखो,
आफताब दिलों में उगाकर तो देखो।

 

सहर कोई जादूगरी, कोई बाजीगरी नही,
अंधेरों का गला दबाकर तो देखो।

 

मुश्किलें, दुश्वारियां तो रास्तों की शोभा है,
अपने क़दमों को बढ़ाकर तो देखो।

 

ये अकाल ख़ुदा या मौसम का कुसूर नहीं,
हर आँगन में पेड़ लगाकर तो देखो।

 

कब तलक यूं अंधेरों से मुंह छिपाते फिरोगे,
एक दिया दीपक जलाकर तो देखो।

 

 

विनोद कुमार दवे

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