Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वतन

 

तिरंगा लहराता रहे सदा ऊँचे आसमान में
समन्दर भी चरणों में झुका जिसके सम्मान में।

 

वतन मेरा मेरे दिल में धड़कता रहे धड़कन बन
जीऊँ तो इसकी आन में, मरूँ तो इसकी शान में।

 

ये महकता चमन है मेरा वतन मेरा भारत
आज़ादी की खुशबु फैली है इस गुलिस्तान में।

 

बच न पाई कोई सभ्यता काल के प्रहार से
कामयाब रही ये संस्कृति वक़्त के हर इम्तिहान में।

 

कुदरत भी जिसके गुण गाती है पृथ्वी के कोने कोने
पर्वतों पर, नदी किनारे, खेत में, खलिहान में।

 

लहू बन कर रहता है मेरे रग रग में मेरा वतन
हवा बनकर बहता है प्रेम भारत महान में।

 

मौत आए तो आए इसी पावन धरा पर
मिटूँ इसी माटी में, जन्म लूँ तो हिन्दुस्तान में।

 

 

विनोद कुमार दवे

 

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