Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देकना चाहती हूँ दुनिया को एक नजर

 

मत भेज वे वक्त मुझे यमराज के घर
देखना चाहती हूँ दुनिया को में भी एक नजर


वे कसूर हूँ में मुझ पर तू ये जुर्म न कर
देखना चाहती हूँ दुनिया को में भी एक नजर


लहू से सींचा है जिसको मै बाग की वो कली हूँ
गूँजती है शहनाईयाँ जहाँ इस जहान की वो गली हूँ


भूमिका मेरी भूल के न मुझे तू बेआबरु कर
देखना चाहती हूँ दुनिया को में भी एक नजर


माँ के आँखों में जो रहे हरदम मै वो नमी हूँ
पैदा कर दे जो फरिस्ते को मै वो जमीन हूँ


कांटे उगाकर मेरे सीने पर न बना इसे बंजर
देकना चाहती हूँ दुनिया को में भी एक नजर


क्या जुर्म था मेरा किस पाप की सजा दी
डोली की जगह जो मेरी अर्थी सजा दी


रोशनी दुडते फिरते हो चिराग को भुजा कर
देकना चाहती हूँ दुनिया को में भी एक नजर

 


विनोद कुमार खबाऊ

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