Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कभी खुद रोते है और कभी हमको रुलाते है

 

हमसफ़र हमारे हम पर क्या क्या जुल्म ढाते है
कभी खुद रोते है और कभी हमको रुलाते है

 

सुनाने से नहीं सुनते हमारी कोई फरयाद
करके कोई खता गुमसुम बैठ जाते है
कभी खुद रोते है कभी हमको रुलाते है

 

मुहबत है हमें खुद से भी ज्यादा उनसे उन्हें शायद इसका एहसास नहीं
कैसे यकीं दिलाऊँ मै दिल जान सब उनका है सिवाई इसके कुछ पास नहीं
कदम कदम पर जान जान कर वो मुझे किलसाते है
कभी खुद रोते है और कभी हमको रुलाते है

 

परेशान हूँ मै ये सोच कर की जहाँ प्यार था वहां तकरार है
भूल गए वो वादे और कसमे ये कैसी मुहबत कैसा प्यार है
खफा अगर मै रहूँ उनसे तब भी नहीं मनाते है
कभी खुद रोते है और कभी हमको रुलाते है

 

याद करके वो प्यार भरे दिन मेरी आँखों में जेसे सावन भादो बरसते है
मुहबत की हर सीडी चडी जिनके कदमो से उनकी एक निगहा को तरसते है
हमें आँसुओं के जाम पे जाम सुबह शाम पिलाते है
कभी खुद रोते है और कभी हमको रुलाते है

 

आँखों में रहते थे जिनके हम हर पल वही हमसे आँखे चुराते है
हिसेदार है जिनके हर गम के हम वो हमी से दर्दे गम छुपाते है
खफा खफा से रहकर वो हमें एहसासे गम करते है
कभी खुद रोते है और कभी हमको रुलाते है

 

मुहबत के सफ़र में है मालिक ये कैसे कैसे मोड़ आते है
दिकते है फूल ही फूल पर असल मै कांटे ही कांटे है
अंगारे तो अंगारे रहे यहाँ फूल भी जलाते है
कभी खुद रोते है और कभी हमको रुलाते है

 

विनोद कुमार खबाऊ

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