काँटों से भरी इस दुनिया में जाऊँ तो किधर जाऊँ
हूँ परेशान यारों करूँ क्या हाले दिल किसे बताऊँ
हाले दिल बताऊँ जिसे ऐसा कोइ मसीहा तो मिले
राहा दिखादे जो मुझे ऐसा कोई फरिस्ता तो मिलें
हमराही इस राहा में मै बनाऊँ तो किसे बनाऊँ
हूँ परेशान यारों करूँ क्या हाले दिल किसे बताऊँ
इस कँटीली बाग में कहि कोई कोना तो मिलें
उम्मीदें मेरी जहाँ बनके कोई फुल तो खिले
उम्मीदों के इस फुल को उगाऊँ तो कहाँ उगाऊँ
हूँ परेशान यारों करूँ क्या हाले दिल किसे बताऊँ
यारों इस शहर में वो जगहि नही है
जहाँ चलती कभि कोई हवा ही नही है
मन के इस दीप को जलाऊँ तो कहाँ जलाऊँ
हूँ परेशान यारों करूँ क्या हाले दिल किसे बताऊँ
मै इस शहर में यारों जबसे घूमा फिरा हूँ
जने किस किस तरह के सवालों से घिरा हूँ
जबाब इन सवालों का में लाऊँ तो कहाँ से लाऊँ
हूँ परेशान यारों करूँ क्या हाले दिल किसे बताऊँ
काँटों से भरी इस दुनिया में जाऊँ तो किधर जाऊँ
हूँ परेशान यारों करूँ क्या हाले दिल किसे बताऊँ
विनोद कुमार खबाऊ
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY