सोच जरा की तेरा हश्र क्या होगा
उस अदालत में तू मुल्जीम जज खुदा होगा
जब तेरे हर जुर्म का ईसाब होगा
उस अदालत में तू मुल्जीम जज खुदा होगा
क्या करेगा जब वो पूछेगा तेरे जुल्मो का इसाब
झूठ भी नहीं बोल पाएगा क्या देगा फिर जबाब
हर जुर्म तेरा उसके खाते पर लिखा होगा
उस अदालत में तू मुल्जीम जज खुदा होगा
किसकी आड़ में छुपाएगा खुद को तू वहां पर
वहाँ न रिश्ते नाते होंगे न दोस्त और न होगा घर
वहाँ न दलिल न कोई वकील न गवा होगा
उस अदालत में तू मुल्जीम जज खुदा होगा
रिशवत का भी नहीं है वहाँ पर जमाना
ये दाव भी न तू उधर आजमाना
वहाँ हर सवाल पर तेरा जबाब हाँ होगा
उस अदालत में तू मुल्जीम जज खुदा होगा
मत दे चुनोती उसकी निगाह को है मुर्ख इन्सान
नहीं चुप सकता उससे कोई जुर्म ये जान ले नादान
तूने छुपाया हो कितना ही उसको सब दिखा होगा
उस अदालत में तू मुल्जीम जज खुदा होगा
विनोद कुमार खबाऊ
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