वाह रे वाह कलियुग तेरा पथ झूठो से ही चलता है।
भरे पेठ को भर भर दिया बस भूखों को नहीं मिलता है।।
सच्चो घर मिटटी के और खाने को एक दाना नहीं।
झूठो के घर चिड्ढमहल अन्न-धन का कोई ठिकाना नहीं।।
तेरे प्रहर में सच मूरझा और झूठ कवंल सा खिलता है।
भरे पेठ को भर भर दिया बस भूखों को नहीं मिलता है।।
सच के घर दिन में ही अन्धेरा झूठ की रात उजाली है।
झूठ की चमक है सोने जैसी सच की सूरत भी काली है।।
तेरे प्रहर में सच विफल बस झूठ ही क्यूँ कर फलता है।
भरे पेठ को भर भर दिया बस भूखों को नहीं मिलता है।।
झूठ के घर में दूध की नदियाँ सच के घर कभी छाछ नहीं।
झूठ खाहत है लडडू पेडे सच को ्यकर की आस नहीं ।।
तेरे प्रहर में झूठ है राजा सच के हाथ में चिमटा है।
भरे पेठ को भर भर दिया बस भूखों को नहीं मिलता है।।
झूठ है राज सिह्नासन पर और सच बैठा एक कोने में।
झूठ के हाथ में चाँदी की थाली सच खाता है दोने में।।
तेरे प्रहर में झूठ बडा और सच छोटा क्यॅूं निकलता है।
भरे पेठ को भर भर दिया बस भूखों को नहीं मिलता है।।
विनोद कुमार खबाऊ
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