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हर मोड़ पे दिखता है एक पैगाम आदमी|
आगाज़ उसी से यहाँ अंजाम आदमी||
पुरखों नें जो बताया हमें सच ही तो है,
लगता है कभी दिन,यहाँ पे शाम आदमी|
कैसे कहें कि सब यहाँ पे पाक साफ है,
ईमाँ कहीं पे है,कहीं बेदाम आदमी|
जो जीतता रहा है जुल्म से यहाँ "विनोद",
उसको बताओ होता है क्या आम आदमी||
ईक दामिनी की मौत ने ये हमको बताया,
हो जाता है कैसे यहाँ सरनाम आदमी|
~ विनोद यादव "निर्भय"
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