बुलन्दी जिसकी फ़ितरत है,और जीवन में आशा है
उसी के हक़ में बाज़ी है,उसी के वश में पांसा है
हमेशा दिल की सुनता हूँ;और दुर्गम पथ चुनता हूँ,
ज़िन्दगी शर्तों पे जीता यही मेरी परिभाषा है
ये कैसी ज़िन्दगी उलझी वक्त की धार में मेरी,
घटा है हर तरफ लेकिन मेरा मन प्यासा-प्यासा है
कई चेहरे हैं चेहरों पर;ये ऐसा दौर है यारों,
जिसे रहबर समझता हूँ;वही क़ातिल बन जाता है
उन्हें भी शाख से पत्तों सदृश मैं टुटते देखा,
बहुत ऊँची है जिनकी हद मगर दिल में हताशा है
जब अपनें पथ से हटता है;कई टुकड़ों में बँटता है,
मूल में जब-जब ठहरा दिल;नये रस्ते तराशा है
-विनोद कुमार यादव
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