Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बुलन्दी जिसकी फ़ितरत है

 

बुलन्दी जिसकी फ़ितरत है,और जीवन में आशा है
उसी के हक़ में बाज़ी है,उसी के वश में पांसा है

 

हमेशा दिल की सुनता हूँ;और दुर्गम पथ चुनता हूँ,
ज़िन्दगी शर्तों पे जीता यही मेरी परिभाषा है

 

ये कैसी ज़िन्दगी उलझी वक्त की धार में मेरी,
घटा है हर तरफ लेकिन मेरा मन प्यासा-प्यासा है

 

कई चेहरे हैं चेहरों पर;ये ऐसा दौर है यारों,
जिसे रहबर समझता हूँ;वही क़ातिल बन जाता है

 

उन्हें भी शाख से पत्तों सदृश मैं टुटते देखा,
बहुत ऊँची है जिनकी हद मगर दिल में हताशा है

 

जब अपनें पथ से हटता है;कई टुकड़ों में बँटता है,
मूल में जब-जब ठहरा दिल;नये रस्ते तराशा है

 

 

-विनोद कुमार यादव

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ