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जिधर देखता हूँ,है कोहराम फैला,
जिधर देखता हूँ,है फैली उदासी|
कोई पढ ना पाया आतंकी का चेहरा,
चाहे हो डाक्टर या हो सन्यासी||
आज रक्षा व्यवस्था बड़े शख़्त में,
हो रही है कड़ी मंत्रियों की निगरानी|
कोई ना जाने कहाँ आज क्या हो!
कहाँ बम से चिथड़े उड़े आसमानी!!
कोई पढ ना पाया आतंकी का चेहरा,
चाहे हो डाक्टर या हो सन्यासी......
पाक तो दहशत से थर्रा गया,
बच्चों का लहूँ जब बहा बन के पानी|
आतंक का जबकि ठिकाना है वो,
हो रही है वहाँ कैसे मनमानी!
किसी को ना बख़्सा कभी ख़ौफ ने,
चाहे पेशावर या फिर हो काशी|
कोई पढ ना पाया आतंकी का चेहरा,
चाहे हो डाक्टर या हो सन्यासी.......
साँसों की तरह सबके दिल में उतरकर|
भाई,हितैषी,मददगार बनकर||
सबके दिलों में जलाकर मोहब्बत,
रिस्तों का 'निर्भय' करे वो बिनाशी|
कोई पढ ना पाया आतंकी का चेहरा,
चाहे हो डाक्टर या हो सन्यासी......
-------------विनोद यादव "निर्भय"
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