दिलों को जोड़कर नफ़रत मिटा दे ओ मेरे मौला
कोई भी हो पुराना ग़म भुला दे ओ मेरे मौला
कोई हिन्दू,कोई मुस्लिम,यहाँ पर सिक्ख है कोई,
मगर मुझको यहाँ इंसा बना दे ओ मेरे मौला
धरम के नाम पर अब आशियाँ न फ़िर जलायें हम,
दिलों को कूप से सागर बना दे ओ मेरे मौला
ज़ुबाँ पे कुछ,दिलों में कुछ और करनी में कुछ जिनके,
मेरे गुलशन को ऐसों से बचा ले ओ मेरे मौला
कुलाचे भर रहे हैं कुछ यहाँ सूरज को छूनें की,
वो नादाँ हैं,वहम उनका मिटा दे ओ मेरे मौला
- विनोद कुमार यादव
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