Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हठी बादल

 

 

निष्क्रिय और बेजान सी हो गयी है|
धरती रेगिस्तान सी हो गयी है||

 

 

ऐ बादल ! तेरे हठी मिजाज़ से,
किसानों की आत्मा लहूलुहान सी हो गयी है|

 

 

सूख गये तालाब और नदियाँ,
पशु-पक्षियाँ निष्प्राण सी हो गयीं है||

 

 

तैर रहे आकाश में बेवजह क्यूँ "निर्भय",
बरसो भी फिजा श्मशान सी हो गयी है|

 

 

~ विनोद यादव "निर्भय"

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