निष्क्रिय और बेजान सी हो गयी है|
धरती रेगिस्तान सी हो गयी है||
ऐ बादल ! तेरे हठी मिजाज़ से,
किसानों की आत्मा लहूलुहान सी हो गयी है|
सूख गये तालाब और नदियाँ,
पशु-पक्षियाँ निष्प्राण सी हो गयीं है||
तैर रहे आकाश में बेवजह क्यूँ "निर्भय",
बरसो भी फिजा श्मशान सी हो गयी है|
~ विनोद यादव "निर्भय"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY