पसीनें से तर-बतर हैं आज गरमी से|
जिन्दगी दर-बदर है आज गरमी से|
सुरज की तपन से बेचैन है तन-मन,
असह्य मँज़र है आज गरमी से|
हर शक्स बेहाल है मौसम-ए-मिजाज़ से,
फिर भी बच्चे बेअसर हैं आज गरमी से||
वे तैर रहें हैं नदियों में बाखुशी "निर्भय",
बेफिक्र-बेख़बर है आज गरमी से|
~ विनोद यादव "निर्भय"
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