Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इज्हार-ए-मोहब्बत

 

तुम्हारे दिल के मकाँ सा सूकूँ और कहाँ,
वहीं पर आजकल रहते हैं हम बेफिक्र होकर|

 

 

इन्तजार है इज्हार-ए-मोहब्बत का तुमको,
तभी तो गैर से रहते हो हमसे मित्र होकर||

 

 

दिल तो चाहता है तू जिगर के पास रहे,
मग़र बढ जाती है धड़कन क्यों जानें तीब्र होकर|

 

 

अगर है प्यार तो ये दूरियाँ नहीं जायज़,
ना बैठ भाग्य की दहलीज़ पर बेफिक्र होकर||

 

 

ताज़-ओ-तख्त की वो माँग क्या करे "निर्भय"
नाम गुज़रा हो जिसका लब से तेरे जिक्र होकर|

 

 

 

~ विनोद यादव "निर्भय"

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