अपनें ख्वाब के तासीर को आली रखें|
ज़मीर से अपनें इश्क़-बफादारी रखें||
हँसते चेहरों को मिलते यहाँ हँसते हुए चेहरे,
गैर-वाजिब है सुरत-ए-भाव बेचारी रखें|
जो दिल में ज़हर और जुबाँ पे सुधा रखतें हैं,
कह दो यूँ ना तवियत वो दो-धारी रखें||
सौ बार गिरकर उठनें का हौसला रखते हम,
कहाँ सम्भव भला ज़मीर हम बाजारी रखें|
तुम्हें जब खुद पे यकीं है नहीं तो बता'विनोद'
कैसे खुदा यकीं वादों पे तुम्हारी रखे||
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*तासीर........प्रभाव
*आली.........महान
*सुधा..........अमृत
*बफादारी....
बफ़आदारी
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~ विनोद यादव निर्भय
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