Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिन्दगी और पथिक

 

जिन्दगी नें पथिक से कहा एक दिन,
मुझको कम ना समझ आजमाकर के देख|

 

 

ग़म की गायब करुँ मैं हँसी खोखली,
सोच में क्यूँ पड़ा मुस्कुराकर के देख||

 

 

थक गया है या लोगों का डर है तुझे,
तू अकेला ही पर्वत हिलाकर के देख|

 

 

लोग पत्थर गिराते हैं तुझपे अगर,
एक तिनके से तारे गिराकर के देख||

 

 

तू मेरा चाँद है मै तेरी चाँदनी,
मुझसे रौशन जहाँ को बनाकर के देख|

 

 

आसमाँ भी झूकेगा तेरे सामनें,
अपनें सर को तू ऊँचा उठाकर के देख||

 

 

 

 

~ विनोद यादव "निर्भय"

 

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