ज़ुबाँ से जब चलाते हो
कटीले तीर सीने में
बड़ा मुश्किल हुआ है यार
इक-इक पल को जीने में
तुम्हें ग़र बात करनी है,
अमन व शान्ति की करते
मगर उलझे पड़े हो तुम
अभी काशी-मदीने में
© -विनोद 'निर्भय'
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ज़ुबाँ से जब चलाते हो
कटीले तीर सीने में
बड़ा मुश्किल हुआ है यार
इक-इक पल को जीने में
तुम्हें ग़र बात करनी है,
अमन व शान्ति की करते
मगर उलझे पड़े हो तुम
अभी काशी-मदीने में
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