एक ही नूर को अल्लाह-राम बना लिया|
कंकण-पत्थर जोड़कर भगवान बना लिया|
असत्य अंगीकार व पुरुषार्थ का परित्याग कर,
याचना में उन्नति की राह बना लिया|
त्यागकर करुणा,दया,उदारता और प्रेम को,
माया-लोभ के तले ईमान झूका लिया||
सहज समाधि छोड़कय अग्यानता के मोह में,
कहत कबीर जग ने अमर हस्ती मिटा लिया|
*याचना(मन्दिर-मस्जिद में मन्नतों हेतु भटकना)
-----------विनोद यादव "निर्भय"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY